
ब्रज होली 2025 में 40 दिनों तक जीवंत उत्सव मनाया जाएगा, जिसमें लट्ठमार, फूलवाली होली, हुरंगा और अन्य अनोखे कार्यक्रम शामिल होंगे। यहाँ आपकी पूरी तरह गाइड है।
ब्रज होली भारत के सबसे जीवंत और प्रिय त्योहारों में से एक है, जो भगवान कृष्ण और राधा की चंचल किंवदंतियों में गहराई से निहित है। 40 दिनों तक चलने वाला भव्य रंगोत्सव ब्रज क्षेत्र, मुख्य रूप से मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगाँव को रंगों, भक्ति और आनंद के चकाचौंध भरे तमाशे में बदल देता है।
बसंत पंचमी से शुरू होकर रंग पंचमी के साथ खत्म होने वाला यह त्यौहार दुनिया भर से भक्तों और पर्यटकों को आकर्षित करता है। लट्ठमार होली, फूलों की होली, लड्डू होली और हुरंगा जैसी अनूठी परंपराएँ होली की भावना को जीवंत करती हैं, जो ब्रज को एक जादुई, रंगों से सराबोर स्वर्ग में बदल देती हैं। इस असाधारण उत्सव के बारे में आपको जो कुछ भी जानना चाहिए, वह यहाँ है
ब्रज होली 2025 कार्यक्रम
3 फरवरी 2025 | बसंत पंचमी पर होली ध्वजारोहण |
7 मार्च 2025 | नंदगांव व बरसाना में फाग आमंत्रण और लड्डू होली |
8 मार्च 2025 | बरसाना में रंगीली गली में लट्ठमार होली |
9 मार्च 2025 | नंदगांव में लट्ठमार होली |
10 मार्च 2025 | बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली |
10 मार्च 2025 | कृष्ण जन्मभूमि पर हुरंगा उत्सव |
11 मार्च 2025 | गोकुल के रमणरेती और द्वारकाधीश मंदिर में होली |
12 मार्च 2025 | वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली उत्सव |
13 मार्च 2025 | पूरे ब्रज में होलिका दहन |
14 मार्च 2025 | रंगों वाली होली (धुलेंडी) |
होली के बाद ब्रज में यहां होगा रंगोत्सव
- 15 मार्च को बलदेव के दाऊजी मंदिर में हुरंगा खेला जाएगा
- 16 मार्च को नंदगांव में हुरंगा खेला जाएगा
- 17 मार्च को जाव गांव में पारंपरिक हुरंगा खेला जाएगा
- 18 मार्च को मुखरई में चरकुला नृत्य का आयोजन किया जाएगा
- 22 मार्च को वृंदावन के रंगनाथ मंदिर में होली का उत्सव मनाया जाएगा और इसी के साथ 40 दिन तक चलने वाला होली महोत्सव का समापन हो जाएगा
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ब्रज होली 2025 का इतिहास और महत्व
मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगाँव सहित ब्रज क्षेत्र हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व रखता है, क्योंकि यह भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के जीवन से निकटता से जुड़ा हुआ है। अपने कई मंदिरों और तीर्थ स्थलों के साथ, यह क्षेत्र साल भर भगवान कृष्ण के हजारों भक्तों को आकर्षित करता है।
ब्रज में होली की उत्पत्ति के लिए, कहानी भगवान कृष्ण की चंचल हरकतों से जुड़ी है। अपने शरारती स्वभाव के लिए जाने जाने वाले कृष्ण अक्सर वृंदावन की गोपियों पर रंगों से शरारत करते थे। एक लोकप्रिय किंवदंती बताती है कि कैसे कृष्ण अपने काले रंग से परेशान होकर अपनी माँ यशोदा से पूछते थे कि राधा इतनी गोरी और सुंदर क्यों हैं। हल्के-फुल्के जवाब में, यशोदा ने सुझाव दिया कि कृष्ण राधा के चेहरे को अपने चेहरे से मेल खाने वाला रंग दें। कृष्ण ने इस चंचल सलाह को दिल से लगा लिया और इस तरह, होली के दौरान रंग लगाने की परंपरा ब्रज में शुरू हुई, जिसने इस क्षेत्र के जीवंत होली समारोहों की शुरुआत की।